रविवार, 29 मार्च 2020

गुरु का राशि परिवर्तन 29 03 2020

*ग्रहो में प्रधान देवगुरु  (वृहस्पति  ) का राशि परिवर्तन आज 29 मार्च को रात्रि में हो गया है ।*  श्री *मंशापूर्ण ज्योतिष 
डॉ *विकासदीप शर्मा अनुसार** 

 29 मार्च 2020, रविवार की रात्रि 7:08 बजे मकर राशि में प्रवेश  हो गए है । मकर राशि में गुरु बृहस्पति शनि, जिन्हें मकर राशि का स्वामी कहा जाता है उनसे युति भी करेंगे। हालांकि शुभ अशुभ ग्रहों का संयोग क्या देगा यह भी एक बड़ा आंकलन है ।  फिर भी माई की कृपा ओर गुरु आशिर्बाद से गढ़ना करना ज्योतिष का काम है और उसको फलित करना ईश्वर के हाथ है ।।
 
आँकलन अनुसार गुरु के राशि परिवर्तन को काफी अच्छा  रहेगा ।क्योंकि गुरु बृहस्पति की दृष्टि अमृत के समान बताई गयी है। गुरु ग्रह को शुभ ग्रह माना जाता है। गुरु ग्रह का सीधा असर ज्ञान, धर्म-आध्यात्म और नैतिक कामों पर होता है। बात राशियों की करें तो राशियों में धनु और मीन राशि को गुरु बृहस्पति का स्वामित्व प्राप्त होता है।

इसके अलावा गुरु ग्रह को वैवाहिक जीवन और संतान का कारक भी माना गया है। ऐसे में अगर गुरु शुभ होता है तो उसे अच्छा पार्टनर और वैवाहिक सुख मिलता है और साथ ही संतान को सौभाग्य भी प्राप्त होता है। गुरु का मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव होता है तभी गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है। गुरु के मकर राशि में गोचर का असर सभी 12 राशियों पर किसी न किसी रूप में अवश्य होगा। इसका विवरण अगले लेख में होगा ।।

गुरु 29-3-2020  को मकर राशि पर बुरा फल नही देंगे क्यों की । गुरु नीच राशि मे तो जा रहे है लेकिन  नीच भंग राजयोग भी बना रहे है ।।
नीच मतलब ग्रह नीच राशि मे बैठ जाये भंग मतलब कैंसिलेसिन तो ज़ब कोई ग्रह नीच राशि मे आ जाये और जिस राशि मे ग्रह नीच का है उसी राशि का स्वामी वहीं बैठ जाये तो उसको नीच भंग राजयोग कहते है ! 

 *गुरु देवता 29-3-2020 को मकर राशि मे नीच के होकर  आएंगे*   कहा जाता है की नीच का ग्रह बुरा फल देते है लेकिन  यहाँ गुरु देवता बुरा फल नही देंगे क्यों की गोचर के शनि देव मकर राशि यानि अपनी ही राशि मे होने के कारण गुरु देवता की नीचता को खत्म करेंगे !यहाँ नीच भंग राजयोग बन रहा है ! जिनकी भी लग्न कुंडली मे गुरु देवता नीच के है तो घबराने की बात नही गुरु देवता बुरा फल ज्यादा नही देंगे ! ग्रहों का डिग्री वाइज बलाबल और अस्त अवस्था का ध्यान जरूर रखियेगा !
*शनि और गुरु की युति एक महासंयोग है*
 क्योंकि यह दोनों ही ग्रह बहुत प्रभावशाली हैं और मंद गति से चलने वाले ग्रह माने जाते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि लगभग ढाई वर्ष में और गुरु लगभग बारह से तेरह माह के अंतराल में अपना राशि परिवर्तन करता है और इस तरह इनका एक राशि में मिलन होने में कई साल लग जाते हैं।

बृहस्पति की गणना नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह में होती है तो शनि को क्रूर ग्रहों में प्रमुख माना जाता है। दोनों ही न्याय के पक्षधर होते हैं और जहां शनि क्रूरता से कर्म फल प्रदान करते हैं, वहीं बृहस्पति देव उदारता का परिचय देते हुए व्यक्ति को सही मार्ग पर आने का रास्ता दिखाते हैं।

 *58  साल बाद गुरु – शनि का महासंयोग* 

शनि लगभग तीस वर्ष में अपना एक राशि चक्र पूर्ण करता है और बृहस्पति लगभग बारह वर्ष में समस्त राशियों का भ्रमण कर पुनः उसी राशि में वापस लौट आता है। इस प्रकार इन दोनों का मिलन एक अद्भुत घटना मानी जाती है। वैदिक ज्योतिष में सर्वाधिक शुभ माना जाने वाला बृहस्पति ग्रह 29 मार्च 2020 रविवार की रात्रि 7:08 पर मकर राशि में प्रवेश करेगा, जहां पहले से ही मकर राशि का स्वामी शनि विराजमान है। 

 *इस प्रकार गुरु और शनि की यह युति अपना असर दिखाएगी* ।  यह युति लगभग 3 महीने की अवधि तक रहेगी क्योंकि 30 जून को गुरु बृहस्पति वापस अपनी धनु राशि में लौट जाएंगे और 20 नवंबर तक उस राशि में रहेंगे लेकिन 20 नवंबर 2020 को वापस मकर राशि में गुरु के आने के बाद यह युति फिर से अपना असर दिखाने लगेगी। इस प्रकार गुरु बृहस्पति और शनि मकर राशि में लगभग 59 साल बाद फिर मिल रहे हैं। 

 *गुरु शनि की युति का मंगल मिलन* 
गुरु शनि की युति की सबसे खास बात यह भी है कि जब 29 मार्च को बृहस्पति मकर राशि में शनि के साथ युति करेगा तो वहां पर उच्च का प्रभाव लिए हुए मंगल भी उपस्थित होगा, जो कि 4 मई तक उसी राशि में स्थित रहेगा। अर्थात लगभग एक महीना और उससे कुछ अधिक की अवधि में गुरू, मंगल और शनि की युति होगी, जो कि कई मामलों में बेहद प्रभावशाली भी कही जा सकती है।

इन तीनों ग्रहों की युति किसी प्राकृतिक आपदा अथवा आतंकवादी घटना की ओर भी इशारा करती है और ऐसे में किसी युद्ध की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। यह तीनों ही ग्रह अत्यंत प्रभावशाली होते हैं क्योंकि लंबे समय तक एक राशि में स्थित रहकर अपना प्रभाव डालते हैं।

 *गुरु शनि  युति का इतिहास* 

यदि इतिहास के आईने पर नजर डाली जाए तो अब से लगभग 59 साल पहले वर्ष 1961 में गुरु और शनि ने एक साथ मकर राशि में युति की थी और और 1962 तक यह स्थिति चली। हम सभी जानते हैं कि उसी समय में भारत चीन युद्ध की शुरुआत हो गई थी, जिसमें भारत का नुकसान हुआ था और  इसी समय में क्यूबा का मिसाइल संकट भी इसी समय में दिखाई पड़ा था। रूस और अमेरिका जैसे बड़े देशों में परमाणु युद्ध की स्थिति आ चुकी थी। 

सामान्यत  इन दोनों का एक साथ आना और खासकर मंगल का साथ होना, शुरुआती तीन महीनों कि युति में गंभीर परिणाम दे सकता है, जिसमें भारत के लिए चीन अथवा पाकिस्तान से शत्रुता में वृद्धि, युद्ध की आशंका, आंतरिक संघर्ष और विद्रोह की स्थितियां बनेंगी। 

 *स्वतंत्र भारत की कुंडली  में क्या प्रभाव देखेंगे* 

भारत की कुंडली इस समय गुरु नवम भाव में प्रवेश करेगा, जो कि धर्म का भाव भी है। बृहस्पति और शनि की यह युति नवम भाव और तीसरे भाव पर मुख्य रूप से प्रभाव डालेगी, जिसकी वजह से धार्मिक क्रियाकलापों में बढ़ोतरी होगी और बड़े-बड़े  राजनीतिक तथा धार्मिक फैसले न्यायालय द्वारा सुनाए जाएंगे। इसी समय में पड़ोसी देशों से स्थितियों पर गलत असर भी पड़ सकता है। कई देशों में इस समय खंड में लोकतंत्र की मजबूती के लिए सत्ता संघर्ष और जनता के प्रदर्शन देखने के संकेत  मिलेंगे। इसी समय में विश्व आर्थिक मंदी के दौर से गुज़र सकता है। हालाँकि वैश्विक आर्थिक मंदी और व्यापारिक समझौतों से भारत को आंशिक तौर पर लाभ भी मिलेगा।  कई ऐसी चीजें देखने मिलेंगी जो 60 साल पहले कभी देश मे देखने को आई है । देश के प्रधानमंत्री  श्री नरेन्द्र जी मोदी की  जन्म कुंडली मे बृश्चिक राशि पर यह युति  पराक्रम भाव मे गुरु शनि नीच भंग राज योग इस विपरीत परिस्थितियों में भी भारत को मजबूत और ससक्त बनाएगा ।। संघर्ष है लेकिन सफलता अवश्य मिलेगी । जय माई की जय गुरुदेव ।

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