शनिवार, 24 अक्टूबर 2020

25 10 2020 रविवार को दशहरा ओर विजय दशमी का पूजन महूर्त*

*25 10 2020 रविवार  को दशहरा ओर विजय दशमी का पूजन महूर्त* 

पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था। भगवान राम के रावण पर विजय प्राप्त करने के कारण ही इस दिन को विजयादशमी कहा जाता है। इसके अलावा इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का भी वध किया था। हालांकि इस साल दशहरा की तारीख को लेकर लोगों के बीच बहुत भ्रम है। नवरात्रि में 9 दिनों तक आदिशक्ति की आराधना के बाद विजयादशमी को हर व्यक्ति अपने जीवन में विजय प्राप्ति के लिए शस्त्रों की पूजा करता है। इस दिन मां दुर्गा, देवी अपराजिता, मां काली की आराधना के साथ शस्त्र पूजा की जाती है। 
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल दशहरा का त्योहार 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा  इसके पीछे का कारण है- अष्टमी और नवमी का एक ही दिन पड़ना। 24 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 58 मिनट तक ही अष्टमी है, उसके बाद नवमी लग जाएगी।

 *दशमी तिथि प्रारंभ - 25 अक्टूबर को सुबह 07:41 मिनट से* 

विजय मुहूर्त - दोपहर 01:55 मिनट से 02 बजकर 40 तक।

अपराह्न पूजा मुहूर्त - 01:11 मिनट से 03:24 मिनट तक।

दशमी तिथि समाप्त - 26 अक्टूबर को सुबह 08:59 मिनट तक रहेगी। दशहरा के दिन में सीमा उल्लंघन की भी पता है और तो और अपने जो साधन है गाड़ी घर व्यवसाय की जगह शब्दों के साथ करके पवित्र करके उनकी पूजा की जाती है और तो और उस दिन *शमी की पत्तों का दान किया जाता है* और जब हम नए वस्त्र परिधान करके गांव की सीमा लांड कर आ जाते हैं घर में तब हमारे घर की महिलाएं हमारा ऑक्शन करके मतलब यह की हमारा दिए की थाली से पूजा की जाती है कुछ मीठा खिलाया जाता है और हमारी एक नई शुरुआत हो जाती है।
महानवमी के हवन के बाद दुर्गा पूजा अपने समापन की ओर अग्रसर होता है। नवरात्रि की दशमी ति​थि यानी विजयादशमी या दशहरा को विशेष पूजा का आयोजन होता है। विजयादशमी के दिन देवी अपराजिता, शमी वृक्ष और शस्त्र पूजा की जाती है। विजयादशमी 25 अक्टूबर दिन रविवार को है। इस दिन महानवमी और दशमी दोनों ही हैं। दशमी के दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और भगवान श्रीराम ने रावण वध कर लंका विजय की थी, इसलिए दशमी को विजयादशमी के रुप में मनाते हैं। विजयादशमी या दशहरा को असत्य पर सत्य की जीत के रुप में देखा जाता है। 

 विजयादशमी के दिन देवी *अपराजिता, शमी वृक्ष और शस्त्र पूजा का मुहूर्त और महत्व क्या है।* दशमी तिथि का प्रारम्भ 25 अक्टूबर को सुबह 07:41 बजे से हो रहा है, जो 26 अक्टूबर 26 को सुबह 09:00 बजे तक है। 25 अक्टूबर को दशमी तिथि का अपराह्नकाल में पूर्ण व्याप्ति है, इसलिए 25 अक्टूबर को दशहरा या विजयादशमी रहेगी ।

 *दशहरा: शस्त्र पूजा मुहूर्त* 

दशहरा के दिन शस्त्र पूजा के लिए विजय मुहूर्त उत्तम माना जाता है। इस मुहूर्त में किए गए कार्य में सफलता अवश्य प्राप्त होती है। विजयादशमी के दिन शस्त्र पूजा के लिए विजय मुहूर्त दोपहर 13:57 बजे से दोपहर 14:42 बजे तक है। इस समयकाल में आपको अपने शस्त्रों की पूजा करनी चाहिए।

 *अपराजिता देवी की पूजा विधि* 

अक्षत्, फूल, दीपक, गंध, धूप आदि के सा​थ अष्टदल पर अपराजिता देवी की मूर्ति स्थापना करें। ओम अपराजितायै नमः मंत्र का उच्चारण कर देवी की स्थापना की जाती है। देवी के दाएं भाग में जया तथा बाएं भाग में विजया की स्थापना होगी। फिर आवाहन पूजा करें।

प्रार्थना मंत्र

चारुणा मुख पद्मेन विचित्रकनकोज्वला।

जया देवि भवे भक्ता सर्व कामान् ददातु मे।।

काञ्चनेन विचित्रेण केयूरेण विभूषिता।

जयप्रदा महामाया शिवाभावितमानसा।।

विजया च महाभागा ददातु विजयं मम।

हारेण सुविचित्रेण भास्वत्कनकमेखला।

अपराजिता रुद्ररता करोतु विजयं मम।।

 *शमी की पूजा* 

शमी पूजा विशेष कर क्षत्रिय करते हैं। शमी वृक्ष की पूजा दशहरा वाले दिन प्रदोष काल में की जाती है। कहा जाता है कि पांडवों ने महाभारत के युद्ध के समय अपने अस्त्र-शस्त्र शमी के वृक्ष पर छिपाए थे, जिससे उन्हें युद्ध में विजय मिली। हालांकि शमी को दृढ़ता तथा तेजस्विता का प्रतीक माना जाता है। उसमें अन्य वृक्षों की तुलना में अग्नि तत्व ज्यादा होता है। हम भी शमी की तरह ही तेजस्वी तथा दृढ़ हों, इसलिए इसकी पूजा की जाती है।

 *विजयादशमी या दशहरा का महत्व* 

भगवान ​श्रीराम ने माता सीता को रावण के चंगुल से मुक्त कराने के लिए लंका पर चढ़ाई की थी। रावण की राक्षसी सेना और श्रीराम की वानर सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ था, जिसमें रावण, मेघनाद, कुंभकर्ण जैसे सभी राक्षस मारे गए। रावण पर भगवान राम के विजय की खुशी में हर वर्ष दशहरा मनाया जाता है। वहीं, मां दुर्गा ने महिषासुर का अंत कर देवताओं और मनुष्यों को उसके अत्याचार से मुक्ति दी थी, उसके उपलक्ष में भी हर वर्ष दशहरा मनाया जाता है। श्री राम का लंका विजय तथा मां दुर्गा का महिषासुर मर्दिनी अवतार दशमी को हुआ था, इसलिए इसे विजयादशमी भी कहा जाता है। विजयादशमी या दशहरा बुराई पर अच्छाई तथा असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है।
 *जय माई की, जय गुरुदेव*

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