शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

naag panch mi

PT.VIKAS DEEP SHARMA MANSHAPOORN ASTRO KENDRA

10/DEC/2010 मार्गशीर्ष माह की पंचमी को इस बार नागपंचमी यानि का शुभयोग बना है। सावन या अन्य किसी माह की अमावस्या या सोमवती अमावस्या को शिव के साथ ही चंद्र दोष दूर करने के लिए चंद्रपूजा का महत्व है। यह शुभ तिथि पितर दोष दूर करने के लिए पितृपूजा भी की जाती है। यहां हम जानते हैं क्या है चंद्रदोष और चंद्रदोष दूर करना क्यों जरुरी है -
हर व्यक्ति के जीवन में सफलता या असफलता, उन्नति या पतन उसके कर्म और भाग्य निश्चित करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के कार्यों और उनके परिणामों पर कुण्डली के ग्रहों का अच्छा या बुरा प्रभाव होता है। कुण्डली में कोई ग्रह नीच स्थान पर हो तो वह बहुत नुकसान पहुंचा सकता है। वहीं बलवान होने पर वह ग्रह सुख, यश, ऐश्वर्य और सौभाग्य देता है। इसलिए ग्रहों की प्रसन्नता के लिए धर्मशास्त्रों में पंचांग में हर वार का एक ग्रह देवता है। इसी कड़ी में चंद्र के लिए सोमवार का दिन नियत है। इसे चन्द्रवार भी कहते हैं। चन्द्रमा की सभी कलाओं और इस ग्रह के स्वामी है सोमदेव।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मन का स्वामी चंद्रमा है। इसलिए चन्द्र हमारे विचार और व्यवहार को नियत करता है। इसके कारण हमारे मन, मस्तिष्क नियंत्रित होते हैं। व्यक्ति की जन्मकुण्डली में चन्द्र कमजोर होने पर मन में बैचेनी, उतावलापन, अकारण गुस्सा करना, बिना कारण कलह और कुविचार पैदा होते हैं। मन के अलावा तन के अंगों का स्वास्थ और सौंदर्य भी चंद्र के बली या नीच होने पर निर्भर है। मनुष्य शरीर में आंख, पेट और स्त्री के गर्भाशय, स्तन और प्रजनन अंगों के स्वामी चंद्र ही है। चंद्र के बली होने पर व्यक्ति की आंखे सुंदर, पांचन क्रिया स्वस्थ होती है और स्त्री का संतान सुख प्राप्त होता है। इसके विपरीत चंद्र के नीच होने पर र्नेत्ररोग, पेट रोग और स्त्री संतान सुख से वंचित रह सकती है।
यही कारण है कि कुण्डली में आए चंद्रदोष दूर करने और अनुकूल ग्रह दशा के लिए नाग पंचमी ,सोमवती अमावस्या या अमावस्या के दिन चंद्रपूजा के साथ सोमवार का व्रत भी बहुत शुभ फलदायी माना जाता है। इससे शरीर निरोग होने के साथ ही मन से कलह और तनाव का भी अंत होता है क्योंकि इन तिथियों का सम्बन्ध राहू और केतु के साथ है जोकि चन्द्रमा को तंग करने की क्षमता रखते हैं और इन तिथियों पर शंकर जी की कृपा से राहू - केतु को शांत करने का प्रावधान ही सर्प शांति या सर्प पूजा है...........
 पितर दोष और काल सर्प दोष में कोइ अंतर नहीं है , क्योंकि राहू जब सूर्य,गुरु को दूषित करते हैं तो पितर दोष....चंद्रमा को दूषित करते हैं तो मातृ-श्राप......बुध को दूषित करे तो जड़ दोष ......मंगल को दूषित करे तो भ्रातृ-श्राप.......शुक्र को दूषित करे तो पत्नी-श्राप......शनि को दूषित करे तो प्रेत-छाया दोष..ये सब दोष राहू बनाता है और यही राहू अगर केतु के साथ सभी ग्रहों को लपेट ले तो ये सारे श्राप लगे होते है जिसे काल-सर्प दोष कह दिया गया है...इसलिए शांति तो राहू-केतु की ही करनी होगी.

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